अस्वीकरण : सभी प्रश्नों के उत्तर कमलेश तिवारी की धर्मपत्नी, श्रीमती किरण तिवारी और उनके वकील, श्री हरिशंकर जैन के हैं. किसी भी उत्तर के लिए साक्षात्कारकर्ता को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता. साक्षात्कारकर्ता के निजी विचार लेख के अंत में हैं .
आभार : मैं वकील प्रशांत पटेल जी का धन्यवाद देना चाहती हूँ जिन्होंने कमलेश तिवारी के परिवार की संपर्क सूचना उपलब्ध करायी. अंग्रेजी में पहले लिखे गए इस साक्षात्कार का यह हिंदी अनुवाद प्रशांत पटेल की पत्रिका ‘उत्पल’ के लिए किया गया है, और अब यह इस ब्लॉग पर भी पढ़ा जा सकता है.
प्र : इस केस की शुरुआत कैसे हुई?
कि. ति. : २ दिसम्बर २०१५ को पुलिस आई और कमलेश जी को पकड़कर ले गयी, उनकी गिरफ्तारी हुई क्योंकि उन्होंने किसी दुसरे धर्म के पैगम्बर को समलैंगिक व् अन्य कुछ कहा. वैसे ये किस्सा शुरू हुआ था जब समाजवादी पार्टी के आज़म खान ने सरे आम आरएसएस को समलैंगिक कहा था क्योंकि उनके प्रचारक विवाह नहीं करते (जब तक वे अपनी मर्ज़ी से प्रचारक रहते हैं ). तिवारी जी उनकी इस बात से बहुत विक्षुब्ध थे. हमें नहीं पता था की ये केस इतना गंभीर रूप ले लेगा.
प्र : लोग कहते हैं की समलैंगिकता एक निजी चयन है. इसे अपराध नहीं माना जा सकता, तो दोनों तरफ से इतनी नाराज़गी क्यों व्यक्त की गयी ?
कि. ति. : समलैंगिकता चाहे अपराध ना हो, पर ये तो सच है ही कि इससे सभ्यता को आगे नहीं बढाया जा सकता. और अगर एक सामाजिक व् सांस्कृतिक संगठन पर स्त्री-पुरुष सम्बन्ध विषयक निर्णायक टिप्पणियां दी जाएँगी तो नाराज़गी तो होगी ही. तिवारी जी ने तो सिर्फ नाराज़गी ज़ाहिर की और कुछ बोल दिया, उस तरफ से तो इनको गिरफ्तार कर लिया गया. यही सहिष्णुता का फर्क है .
प्र : सुनने में आया है की कमलेश तिवारी ने वो प्रेस विज्ञप्ति लिखी ही नहीं थी, और उनको एक सांप्रदायिक षड्यंत्र और हिंदुयों को नीचा दिखने के तहत फंसाया गया है. इस बारे में आपका क्या कहना है ?
कि. ति. : देखिये, मैंने कभी तिवारी जी से उनके विचार और कार्यों के बारे में ज्यादा बातचीत नहीं की. हमारे ३ बच्चें हैं और मेरा समय उनको देखने में ही निकल जाता है. जहाँ तक मुझे पता है, उन्होंने वो प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशन के लिए दी ही नहीं थी. वो तो उन्होंने गुस्से में अपने उदगार लिखे थे और अपने ऑफिस की मेज पर ही छोड़ दिए थे. क्या हिन्दुओं को इतना भी अधिकार नहीं है की वो अपने विचार अपने निजी स्थानों पर लिख सकें ? उसको किसने पब्लिक किया? पूरा केस एक षड्यंत्र नहीं है पर तिवारी जी को पकड़ कर ले जाना जानकर किया गया है .
प्र : सुना है की आपको कई धमकियाँ मिली हैं और कमलेश तिवारी के ऊपर फतवे जारी किये गए हैं. क्या ये सच है?
कि. ति. : हाँ ये सच है. तिवारी जी के फ़ोन नंबर पर धमकी भरे कॉल आये हैं. लेकिन पुलिस ने उन नम्बरों का रिकॉर्ड नहीं रखा है, पुलिस के द्वारा हमें यही कहा गया है की उन नम्बरों से दोबारा फ़ोन न उठाएं. मुझे बताया गया की तिवारी जी के सर पर कई फतवे जारी किये गए हैं, हीरों के ताज का, करोरों रुपये का. लेकिन मुझे नहीं पता की ये फतवे कहाँ से या किसने जारी किये हैं. ये जांच होनी चाहिए. तिवारी जी को हम जेल में नहीं रहने देना चाहते पर उनको बाहर सिक्यूरिटी की सुविधा चाहिए होगी. केवल कुछ बोल देने के कारन ज़िन्दगी भर डर में नहीं जिया जा सकता.
प्र : अपने परिवार के बारे में कुछ बताइए. क्या आप पाठकों को और कुछ कहना चाहेंगी?
कि. ति.: मेरा अपना मायका और ससुराल दोनों गाँव में हैं. वो लोग यहाँ लखनऊ में हमारे साथ नहीं हैं. हम काफी समय से हिन्दू महासभा के कार्यालय में ही रह रहे थे, मैंने यही निर्णय लिया की मैं यहीं रहूंगी क्योंकि यहाँ रहकर तिवारी जी से जेल में मिलना आसान है. हमें मदद मिल रही है इसलिए मैं वापस गाँव नहीं गयी. इश्वर की दया है की तिवारी जी को जेल में यातना नहीं दी जा रही है. कुछ लोग कहते हैं की तिवारी जी जेल में ज्यादा सुरक्षित हैं पर ये न्याय नहीं है. अभी सबसे बड़ी मुश्किल जो आ रही है वो ये है की कोर्ट में हमारी सुनवाई की तारीख पर सुनवाई नहीं होती, जज हमें बैठा कर रखते हैं. सबकी बारी आ जाती है पर हमें प्रतीक्षा करने को ही कहा जाता है और दिन निकल जाता है. फिर अगली तारीख मिल जाती है. उम्मीद है आगे हमारे केस की सुनवाई समय से होगी और इस केस को घसीटा नहीं जायेगा. मुझे कानूनी कार्यवाही के बारे में ज्यादा नहीं पता इसलिए वो जानकारी आपको हमारे वकील जैन साहब देंगे.
प्र : जैन जी, कमलेश तिवारी पर किसने पुलिस में शिकायत की, मतलब मुकदमा दायर किया? कोई व्यक्ति है या संगठन?
ह.ज.: आपको यह जानकार हैरानी होगी की कमलेश तिवारी पर मुकदमा राज्य सरकार ने दायर किया है, किसी मुस्लिम संगठन ने नहीं. सबसे पहले उस इलाके के एस एच ओ ने पुलिस में शिकायत / ऍफ़ ई आर करायी जिसके तहत कमलेश को गिरफ्तार किया गया. बाद में, उसके अगले दिन एक मुसलमान व्यक्ति ने शिकायत दर्ज करायी.
प्र : ये वाकई हैरानी की बात है. कमलेश को किस धारा के तहत गिरफ्तार किया गया है? २९५a?
ह.ज.: कमलेश को भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) की २९५a और १५३a धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है. ये दोनों धाराएं धार्मिक भावनायों को आहत करने से सम्बन्ध रखती हैं. सबसे ज्यादा निराशाजनक बात ये है कि राज्य सरकार इस तरह के प्रतिगामी और अवरोही कानून ख़त्म करने की बजाय इनका सहारा लेकर लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल दे रही है.
प्र: अभी तक ज़मानत क्यों नहीं मिल पाई है? आखिर ये केवल एक मौखिक अपराध है.
ह.ज.: ज़मानत इसलिए नहीं मिल पायी है क्योंकि ९ दिसम्बर २०१५ को जिला मजिस्ट्रेट ने कमलेश तिवारी पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट) लगाने का आदेश दिया जिसके तहत १ वर्ष तक कारावास अनिवार्य है. हमने इस आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार और केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय सेक्रेटरी ) को कानूनी प्रस्तुति भेजी थी जिसे दोनों के द्वारा स्वीकार नहीं किया गया. अंत में, किरण तिवारी जी ने अलाहबाद उच्च न्यायलय में रिट याचिका दी, आगे देखते हैं क्या होता है.
प्र : जिस प्रेस विज्ञप्ति के प्रकाशन पर ये मुकदमा दाखिल हुआ, कृपया उसके बारे में और बताइए.
ह.ज.: कोई ऐसा प्रकाशन हुआ ही नहीं. कमलेश तिवारी के उस उदगार को षडयत्र के तहत पब्लिक में लाया गया. अगर आप एस एच ओ की शिकायत को देखें तो उन्होंने प्रमाण के रूप में एक टाइप्ड कॉपी दी है, जिस पर कमलेश के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. और कोई भी प्रमाण नहीं दिया गया है. ना तो मूल प्रति दी गयी है और ना ही उसकी कोई फोटोकॉपी. राज्य सरकार की बिना प्रमाण की शिकायत पर ही राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगा दिया जाना ठीक निर्णय नहीं है, और ये वोट बैंक राजनीती को ही दर्शाता है.
प्र : मैंने सुना है की आप इस केस को लड़ने के लिए कोई पैसे नहीं ले रहे हैं. क्या ये सच है? ऐसा क्यों?
ह.ज.: मैं हिन्दू कारणों के साथ बहुत समय से जुड़ा हुआ हूँ. मैं हिन्दू महासभा / कमलेश तिवारी द्वारा किये हुए अयोध्या जन्मभूमि केस में भी उनका वकील था, जिसमे की २१०१ में फैसला हुआ था. मैं लखनऊ को लक्ष्मण का नगर और ताजमहल को तेजोमहालय साबित करने के लिए भी केस लड़ रहा हूँ. कमलेश तिवारी के केस में राज्य सरकार के द्वारा ये कोशिश करना की उसे जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करके जेल में ही रखा जाए, एक सही दिशा नहीं है. ये धाराएं समाप्त होनी चाहिए. जबकि राज्य सरकार ने फतवे जारी करने वालों के खिलाफ कोई कड़े कदम नहीं उठाये हैं.
प्र : आप दोनों का धन्यवाद तो आपने पाठकों को अपने विचार और कहानी बताई.
दोनों : आपका बहुत धन्यवाद कि आपने इस कहानी को समय दिया. हम आशा करते हैं कि इस तरह के प्रतिगामी, पुराने ज़माने के कानून ख़त्म कर दिए जायेंगे और इनका उपयोग सच को कुचलने में नहीं किया जायेगा. आर एस एस को भी आज़म खान के खिलाफ कड़ी टिपण्णी करनी चाहिए. अगर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम कमलेश तिवारी से हटाया नहीं गया तो वो दिसम्बर २०१६ से पहले जेल से नहीं निकल पाएंगे.
अन्तशब्द : ये आम बात है कि उदारवादी लोग हिन्दू देवी देवतायों पर टिप्पणियाँ करते रहते हैं, और उनका गलत अपमान भी धार्मिक सहिष्णुता के नाम पर हिन्दुओं को सहना पड़ता है. राज्य सरकार द्वारा एक तरफ की ही सहिष्णुता की उम्मीद रखना सेकुलरिज्म नहीं है, और प्रतिगामी व् अवरोही कानूनों को जारी रखना मनुष्य की प्रगति पर एक प्रश्नचिन्ह है.
लेख एक दम सीधा स्पष्ट व् सरल भाषा में निष्पक्ष लिखा गया है
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